Fursat ke pal

Fursat ke pal

Wednesday 26 February 2014

सुबह ८ बजे निकल जाते हो तुम दफ्तर को
शाम तक कागजों और फाइलों  में व्यस्त
इसी लिए मैं अक्सर तुम्हें दिन में एक बार
घुमा लेती हूँ फोन यही सोचकर कि
शाम होते होते कहीं तुम भूल ना जाओ मुझे
क्योंकि मैं तुम्हें कभी भी
खुद को भूलने का मौक़ा दूँगी ही नहीं 

तुम्हारे स्वप्न

स्वप्न तुम देखते हो
और जागती हूँ मैं सारी रात
कैसा नाता है मेरा तुम्हारा
कभी तुम मुझे मन मंदिर में बसा लेते हो
कभी नाराज हो मुझसे खुद को चुरा लेते हो
सामने जब भी आते हो
शांत मासूम बच्चे से
जैसे मुझसे हो अनजान
तुम कितना भी छिपा लो खुद को पर मैं
मैं जानती हूँ तुम्हें
तुम्हारी हर अनकही
पहुँच जाती है मुझ तक
उसी शब्द सेतु के जरिये
जो तुम्हारे ख्यालों में तो हैं पर,
पर जुबाँ तक शायद कभी ना आये
तो लो आज मैं  ही क्यों ना दे दूँ
इस अनाम रिश्ते को एक नाम
जो पनप रहा है
तुम्हारे और मेरे बीच
एक अरसे से तुम्हारी खामोशी में
तुम्हारे सपनो में , तुम्हारे खयालो में ...
कविता बनायीं नहीं जाती
ना ही कविता लिखी जाती है
कविता बुनी जाती है
पल पल गुजरते अहसास को
शब्दों में फंदों सा पिरो कर
विभिन्न अलंकारों से सजा कर
भावों के रस में शब्द शब्द डुबा कर
बुना जाता है कविता रुपी स्वेटर
लो बुन दी मैने कविता
तुम पहन लो इसे गुनगुनाकर 

Thursday 20 February 2014

जम गयी स्याही 
अकड़ गयी कलम 
हाथ हुए बेजान 
सर्दी बहुत है 
खिड़की से देखती हूँ 
दूर तक कोहरा है 
कुछ भी दिखाई नहीं देता 
इस धुएं के सिवा 
सोचा था कुछ लिखूंगी 
उड़ते हुए पक्षियों पर 
किन्तु आज की ठण्ड ने
पक्षियों को घोसले में ही
अल्कसाने को
मजबूर कर दिया
लिखूं तो लिखूं कैसे
मैं भी बैठी हूँ अलसाई सी
रजाई में दुबकी हुई
गुनगुनी धूप के इंतज़ार में
रोज मिलने आते हो 
तुम मेरी खिड़की में 
मुझसे मिलने 
कभी दीखते हो दूर 
तो कभी बिलकुल पास 
कभी मासूम तो कभी शोख चंचल 
कभी मायूस उदास 
तुम हो सबसे अलग ...ख़ास 
निहारती रह जाती हूँ मैं 
तुम्हे अपलक 
अच्छा लगता है
तुम्हारा यूँ मिलने आना
रोज मेरी खिड़की पर .
जब तक मैं जियूंगी 
तुम जीवित रहोगे 
मेरी यादों में 
मेरी बातों में 
मेरे भावो में 
अहसास बनकर 
मैं चाहती हूँ 
तुम सदा 
रहो मेरे साथ 
एक मीठी याद बनकर 
शोख चंचल सी
सौगात बनकर
जीने का खूबसूरत
अंदाज बनकर 
जिस तरह पत्थर पर टपक टपक कर 
एक बूँद अपने निशाँ दर्ज कर देती है 
ठीक उस तरह ही हर हवा का झोंका 
मुझे खींच लेता है , गुजरे ज़माने में 
सच कितने हसीं हुआ करते थे वो दिन 
जब होती थी मेरी दुनिया तुमसे रौशन 
सन्नाटों को चीर कर आज भी सुनाई दे जाती है मुझे 
तुम्हारी खिलखिलाती हंसी 
और अनायास ही हंस पड़ता हूँ मैं भी तुम संग 
तुम्हारी चंचलता भरी मीठी आवाज 
बरबस ही घुल गयी कानो में मिश्री सी
एक अक्स बस गया नैनों में सदा के लिए
गुजर जाते हैं तनहा पल तुम्हारे साथ
तुम्हें याद करते करते
तुम्हारे साथ हँसते मुस्कराते
कभी तुमसे बात करते करते ..