Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday 3 March 2013

पुरानी अलमारी ठसाठस भरी 
सफाई अभियान को कमर कसी 
जैसे जैसे अलमारी से सामान निकाला 
अतीत के पन्नो ने जम कर उलझा डाला 
पलटने शुरू किये जो यादो के सिलसिले 
कुछ बिखरे मोती आज फिर से आ मिले 
झखझोर डाला कुछ बीती बातों ने
मन तरंग कर डाला कुछ सुनहरी यादों ने
कभी मुस्काती तो कभी आँसू बहाती
मैं अतीत में गहरे उलझती जाती
कभी शर्माती कभी सकुचाती
कभी गुस्से से आँखें लाल हो आतीं
डायरी में संजोया हुआ हर पन्ना ऐसे
बीते कल से आज को सजालूँ जैसे
डायरी में इनके वो ख़त
ओह इन्हें भी लिखना आता है
शब्दों का साथ इन्हें भी भाता है
भावों को पन्ने पर सजाना
नखरे दिखाना रूठी को मनाना
वादें वो कसमें या थीं दिखावटी रस्में
जिनसे होकर गुजरी थी मैं कभी
आज फिर से एक बार गुजर रही हूँ अभी
फिर से इस डायरी ने बीती बातों को जीवंत कर डाला
चालीस की उम्र में बीस का सा जोश भर डाला
सोचा कुछ नया धमाल मचाया जाए
जिंदगी को सुनहरे पलों से सजाया जाए
उबासियाँ ना लेने लगे तो यह सफ़र तो
हर पल को सतरंगी रंगों से सजाया जाए
फिर देखना लम्हा लम्हा हसीं होगा
गुजरते वक़्त के साथ गुजर भी गए तो कोई गम ना होगा

और फिर मैं डायरी के अंतिम पन्ने को पलटती
यादों के झरोखे से बाहर आई खुद से एक वादा करती
अपने आज को सजाने का जोश लिए
पुरानी अलमारी जिसमें कैद हैं कई सुनहरे पलों के दस्तावेज
उसे बंद करते हुए जस का तस
इस आस में कि ये पल ये सुहानी यादें
यूँ ही हिस्सा बनी रहें मेरे आने वाले जीवन का
और मैं उम्र डर उम्र
उन्हीं पलों को या उससे भी ज्यादा हसीं पलों को जीती रहूँ हमेशा...अंजना

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