मैंने जब भी आईने में कभी खुद को गौर से देखा है
उभर आई मेरे दिल में कुछ स्मृति रेखा है
कुछ को संजोया मैंने कागज़ पर जो जिया था कभी
ये चंद लिखे हुए पन्ने मेरे जीवन भर का लेखा हैं
कमाया कुछ नहीं मैंने सिर्फ अहसास पाले हैं
कर खुद को कलम क
उभर आई मेरे दिल में कुछ स्मृति रेखा है
कुछ को संजोया मैंने कागज़ पर जो जिया था कभी
ये चंद लिखे हुए पन्ने मेरे जीवन भर का लेखा हैं
कमाया कुछ नहीं मैंने सिर्फ अहसास पाले हैं
कर खुद को कलम क
े हवाले अपने जज़्बात निकाले हैं
जो छुपाया था दिल में गहरे सभी को जाहिर कर डाला
कभी उड़ेल डालीं खुशियाँ कभी गहरा दर्द है निकाला
कभी तन्हाई लिख डाली कभी महफ़िल सजाई है
कलम से दोस्ती मैं अपनी इमानदारी से निभायी है
कभी ममता की मूरत बन माँ का फर्ज़ निभाया है
कभी हंसी ठिठोली कर सखियों का मन बहलाया है
कभी लिखा हैं हंसीं गुलाब तो कभी काँटों को आजमाया है
कलम चलती है मेरी रोज बस अपनी कलम को चलाया है
जो छुपाया था दिल में गहरे सभी को जाहिर कर डाला
कभी उड़ेल डालीं खुशियाँ कभी गहरा दर्द है निकाला
कभी तन्हाई लिख डाली कभी महफ़िल सजाई है
कलम से दोस्ती मैं अपनी इमानदारी से निभायी है
कभी ममता की मूरत बन माँ का फर्ज़ निभाया है
कभी हंसी ठिठोली कर सखियों का मन बहलाया है
कभी लिखा हैं हंसीं गुलाब तो कभी काँटों को आजमाया है
कलम चलती है मेरी रोज बस अपनी कलम को चलाया है