Fursat ke pal

Fursat ke pal

Wednesday 28 November 2012

मैंने जब भी आईने में कभी खुद को गौर से देखा है 
उभर आई मेरे दिल में कुछ स्मृति रेखा है 
कुछ को संजोया मैंने कागज़ पर जो जिया था कभी 
ये चंद लिखे हुए पन्ने मेरे जीवन भर का लेखा हैं 
कमाया कुछ नहीं मैंने सिर्फ अहसास पाले हैं 
कर खुद को कलम क

े हवाले अपने जज़्बात निकाले हैं
जो छुपाया था दिल में गहरे सभी को जाहिर कर डाला
कभी उड़ेल डालीं खुशियाँ कभी गहरा दर्द है निकाला
कभी तन्हाई लिख डाली कभी महफ़िल सजाई है
कलम से दोस्ती मैं अपनी इमानदारी से निभायी है
कभी ममता की मूरत बन माँ का फर्ज़ निभाया है
कभी हंसी ठिठोली कर सखियों का मन बहलाया है
कभी लिखा हैं हंसीं गुलाब तो कभी काँटों को आजमाया है
कलम चलती है मेरी रोज बस अपनी कलम को चलाया है