Fursat ke pal

Fursat ke pal

Friday 21 December 2012

परेशानियों का सबब यह जिंदगानी है 
ना बिजली है ना पानी है 
रोजमर्रा की वस्तुओं के ऊँचे होते जा रहे दाम 
बढती हुई महंगाई की निशानी हैं 
मिलावट का कारोबार गरम है 
जो खा रहे हैं उसके नकली होने का भरम है 
दूध में घुल रहा जहर तो दूध बंद कर सकते हैं पीना 
लेकिन घुल रहा है जो जहर हवाओं में तो क्या बंद कर दें सांस भी लेना 
दवाएं नकली हो रहीं दुआओं से काम चलाओ 
अपनापन अब रहा नहीं आपसदारी में,तो लाउडस्पीकर बजवाओ
गंगा मैली हो गई यमुना से बची ना कोई आस
मुश्किल हुआ अब सोचना कैसे बुझ पाएगी प्यास
अभावों में जी रहे इंसान के बढ़ रहे अभाव
खून की गर्मी इतनी बढ़ गयी खाता अब वो भी ताव
जवानी मशगूल है प्यार के किस्से दोहराने में
योजनायें बंद तरक्की की पड़ी हैं दफ्तर खाने में
पुरानी समस्याएं खड़ी हैं मुंह बाए नए बिल हो रहे पास
संसद से अब जनता भला कैसे लगाए आस
आन्दोलन के चलने से जनजीवन ठप्प हो जाता है
सैलाब जब उमड़ घुमड़ सड़कों पर उतर आता है
तो भैय्या कोई तो जुगत भिड़ाओ
इन समस्याओं से पार पाने को
सवा सौ करोड़ से ज्यादा की जनता की अगुआई को
कोई तो आगे आओ ........................................अंजना चौहान

Thursday 13 December 2012

ऐसा क्यूँ होता है ....
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भीगी पलकें आँखें हैं नम 

दिल में छुपा है कोई गहरा गम 
तेरी मेरी बात के किस्से हैं कम 
दुनिया के फरेब में फंस गए हम
मुस्कान लबों पर ये दिल रोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है .......

सामने वो जब भी आता है
आबोहवा खिला जाता है
मौन है वो मौन है हम
सिमट ना पाए एक दूजे में है गम
दूर से देख के भी मन खुश होता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है ....

देख उदासी मनमीत की अपने
बैचेनी मेरी बढती ही जाती
उलझन उसकी सुलझाऊं कैसे
सोच सोच मैं समझ ना पाती
दर्द उसे हो ये दिल रोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है ........

हो साथ तेरा मेरा
ख्वाबों में हो तेरा बसेरा
सोते खोते हुआ सवेरा
नींद खुली जो टूटा सपना
तनहा ये दिल क्यूँ रोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है .......

चाह हो जिसकी पूरी हो जाए
उम्मीद ना हो जो वो मिल जाए
बंधन प्रीत का जो बंध जाता है
मन चंचल फिर हो जाता है
बावरा मन ये मयूर सा नाचे
मिली ख़ुशी खिल आई बांछे
ये बैरी मनवा सुध बुध खोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है

Sunday 9 December 2012


तुम एकाकी मैं एकाकी 
क्यों ना बन जाएँ एक दूजे के साथी
कुछ तुम अपने मन की कहना 
कुछ मैं अपने मन की कह जाउंगी
हल्का हो जाएगा भारी मन
फिर तुम अपने घर और मैं अपने घर जाउंगी.....हँसते हँसते
काश मैं भी आरक्षण पा जाती 
ऊँचे पद पर काबिज हो जाती 
जल्दी जल्दी चढ़ जाती पदोन्नति की सीढियां 
साथ वालों को पीछे पछाड़ जाती 
लेकिन मेरा दुःख मुझे सालता है बहुत 
काश मैं भी आरक्षण पा जाती
सोये इंसान का जमीर जगा कर देखो 
पानी में आग लगा कर देखो 
चिंगारी एक ही काफी है लौ जलाने के लिए 
एक दिया जलने की देर है कई दिए जल सकते हैं 
गुजारिश यही है बस एक दिया जला कर देखो ............अंजना
बताओ कैसे झुठला दूँ तुम्हारा वजूद मैं 
चन्दा से बन आते हो तुम चांदनी में नहला जाते हो 
सूरज से बन आते हो तुम किरणों से निखार जाते हो 
सही गलत जब समझाते हो पथ प्रदर्शक बन जाते हो 
दोस्त बन निभाते हो साथ तो मन मीत बन जाते हो 
बताओ कैसे झुठला दूँ तुम्हारा वजूद मैं ..................अंजना