Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday 5 August 2012

आज मेरे अरमान भी उड़ रहे हैं उडती हुई पतंग की तरह लेकिन 
जानती हूँ तुम मेरे अहसासों की डोर थामें खड़े हो मुंडेर पर छत की
डर जाती हूँ कहीं कोई आकर काट ना जाए मेरे अरमानो की पतंग 
आ गिरें मेरे अरमान भी कटी पतंग की तरह ही जमीं पर 
चरखी पकड़ाकर मुझे अपने संग ही खड़ा कर लेते हो तुम 
मेरे चेहरे पर उतरते चढ़ते भावों को अच्छी तरह पढ़ लेते हो तुम  
तुम हो की मेरे डर को बखूबी भांप लेते हो 
जानती हूँ तुम खिलाडी हो मंझे हुए पतंगबाज बड़े हो 
पतंग को ऊँचे उड़ाना अच्छी तरह जानते हो तुम 
मेरे अरमानो की डोर तुम कटने नहीं दोगे यह जानती हूँ 
बसे हुए मेरे इस चमन को तुम उजड़ने नहीं दोगे मैं मानती हूँ 

Saturday 4 August 2012

अजनबी कौन हो तुम मेरी रूह को छू लेते हो 
बिखर जाती हूँ मैं ख्यालों में भी तेरा अहसास पाकर 

मेरे अहसासों की डोर थामें खड़े हो तुम उजाले के इंतज़ार में 
सिमट जाती हूँ मैं ख्वाबों में भी तेरे नज़दीक आकर 

सहर का सूरज आज एक नया सन्देश गुनगुनाता है 
फ़ना हो जाती हूँ मैं आज तेरी बाहों में समाकर