आज मेरे अरमान भी उड़ रहे हैं उडती हुई पतंग की तरह लेकिन
जानती हूँ तुम मेरे अहसासों की डोर थामें खड़े हो मुंडेर पर छत की
डर जाती हूँ कहीं कोई आकर काट ना जाए मेरे अरमानो की पतंग
आ गिरें मेरे अरमान भी कटी पतंग की तरह ही जमीं पर
चरखी पकड़ाकर मुझे अपने संग ही खड़ा कर लेते हो तुम
मेरे चेहरे पर उतरते चढ़ते भावों को अच्छी तरह पढ़ लेते हो तुम
तुम हो की मेरे डर को बखूबी भांप लेते हो
पतंग को ऊँचे उड़ाना अच्छी तरह जानते हो तुम
मेरे अरमानो की डोर तुम कटने नहीं दोगे यह जानती हूँ
बसे हुए मेरे इस चमन को तुम उजड़ने नहीं दोगे मैं मानती हूँ