Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday, 4 August 2012

अजनबी कौन हो तुम मेरी रूह को छू लेते हो 
बिखर जाती हूँ मैं ख्यालों में भी तेरा अहसास पाकर 

मेरे अहसासों की डोर थामें खड़े हो तुम उजाले के इंतज़ार में 
सिमट जाती हूँ मैं ख्वाबों में भी तेरे नज़दीक आकर 

सहर का सूरज आज एक नया सन्देश गुनगुनाता है 
फ़ना हो जाती हूँ मैं आज तेरी बाहों में समाकर 

2 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने ....अजनबी कौन हो तुम ......

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  2. ji bahut bahut aabhaar aapka

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