अजनबी कौन हो तुम मेरी रूह को छू लेते हो
बिखर जाती हूँ मैं ख्यालों में भी तेरा अहसास पाकर
मेरे अहसासों की डोर थामें खड़े हो तुम उजाले के इंतज़ार में
सिमट जाती हूँ मैं ख्वाबों में भी तेरे नज़दीक आकर
सहर का सूरज आज एक नया सन्देश गुनगुनाता है
फ़ना हो जाती हूँ मैं आज तेरी बाहों में समाकर
बहुत अच्छा लिखा है आपने ....अजनबी कौन हो तुम ......
ReplyDeleteji bahut bahut aabhaar aapka
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