Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday, 13 January 2013

पहले कभी ना हुआ था ऐसा जैसा अबकी बार हुआ 
नैनों संग नैना टकराए और दिल किसी ने पहली बार छुआ 
तुम गुलाब के फूल सी संग अपने काँटों को लायीं थी 
कहीं चुभे कांटें हाथों में पर कहीं फूलों का नर्म अहसास जगाईं थीं 
तुम्हारे अधरों पर थी खिली मोहक मु
स्कान और चेहरे पर थी हया की लाली
तुम संग अपने पहले मिलन वो घडी थी बहुत निराली
हम अपलक निहार रहे थे तुमको और तुम बैठीं नैन झुकाए थीं
बीच बीच में जब टकराते थे नैना तो तुम थोडा सकुचाई थीं
भूल गए थे हम समय की सीमा समय दौड़ता जाता था
पहर बदल चूका था पर फिर भी हमें होश ना आता था
मौन रहकर भी अंखियों से हमने अपना प्रणय निवेदन था कर डाला
इंतज़ार था उस पल का जब उनकी हाँ संग अपना मधुर मिलन था होने वाला
अपने नयनों की भाषा से प्रेयसी ने भी अपना मौन समर्थन था दे डाला
पहली ही मुलाक़ात में हमने एक दूजे को था अपना मन मीत बना डाला

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