Fursat ke pal

Fursat ke pal

Tuesday, 6 August 2013

वो बोलता बहुत है 
पर दिल की जुबाँ से कुछ कहता नहीं 
सबसे बात कर लेगा पर 
मेरे आगे जुबान खोलता नहीं 
चाह कर भी मौन अपना 
तोड़ नहीं पाता ..ना जाने क्यूँ 
कुछ कहते कहते चुप हो जाना 
कुछ लिखते लिखते रुक जाना 
कभी सामने बैठ घंटों चुप बिता जाना 
कभी कुछ कहने के लिए उकसाना 
उसकी हर बात समझ आती है मुझे
पर वह खुद अपनाप कुछ नहीं कहता
वह बोलता बहुत है पर
उसका मौन कभी नहीं टूटता
कभी राजनीति पर चर्चा तो
कभी किसी नेता पर शब्दों का बेमतलब खर्चा
कभी सामाजिक बातें तो कभी कैसे गुजरीं तनहा रातें
सब कह जाता है पर उसका मौन नहीं टूटता
उसका अखबार लगभग रोज छपता है
चींख चींख कर अपना दर्द बयाँ करता है
उलटे लटक चमगादड़ों से अपने हालात बयाँ करता है
क्या उसकी चींख पहुँच जाती है वहां तक
जहाँ वह पहुंचाना चाहता है
शायद हाँ ...ओह सचमुच हाँ
यह उसका मौन ही तो है जो
की जब तुम बोलोगे तो क्या होगा ........अंजना

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