Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday 9 December 2012


तुम एकाकी मैं एकाकी 
क्यों ना बन जाएँ एक दूजे के साथी
कुछ तुम अपने मन की कहना 
कुछ मैं अपने मन की कह जाउंगी
हल्का हो जाएगा भारी मन
फिर तुम अपने घर और मैं अपने घर जाउंगी.....हँसते हँसते

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