तुम एकाकी मैं एकाकी
क्यों ना बन जाएँ एक दूजे के साथी
कुछ तुम अपने मन की कहना
कुछ मैं अपने मन की कह जाउंगी
हल्का हो जाएगा भारी मनफिर तुम अपने घर और मैं अपने घर जाउंगी.....हँसते हँसते
क्यों ना बन जाएँ एक दूजे के साथी
कुछ तुम अपने मन की कहना
कुछ मैं अपने मन की कह जाउंगी
हल्का हो जाएगा भारी मनफिर तुम अपने घर और मैं अपने घर जाउंगी.....हँसते हँसते
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