Fursat ke pal

Fursat ke pal

Thursday, 13 December 2012

ऐसा क्यूँ होता है ....
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भीगी पलकें आँखें हैं नम 

दिल में छुपा है कोई गहरा गम 
तेरी मेरी बात के किस्से हैं कम 
दुनिया के फरेब में फंस गए हम
मुस्कान लबों पर ये दिल रोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है .......

सामने वो जब भी आता है
आबोहवा खिला जाता है
मौन है वो मौन है हम
सिमट ना पाए एक दूजे में है गम
दूर से देख के भी मन खुश होता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है ....

देख उदासी मनमीत की अपने
बैचेनी मेरी बढती ही जाती
उलझन उसकी सुलझाऊं कैसे
सोच सोच मैं समझ ना पाती
दर्द उसे हो ये दिल रोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है ........

हो साथ तेरा मेरा
ख्वाबों में हो तेरा बसेरा
सोते खोते हुआ सवेरा
नींद खुली जो टूटा सपना
तनहा ये दिल क्यूँ रोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है .......

चाह हो जिसकी पूरी हो जाए
उम्मीद ना हो जो वो मिल जाए
बंधन प्रीत का जो बंध जाता है
मन चंचल फिर हो जाता है
बावरा मन ये मयूर सा नाचे
मिली ख़ुशी खिल आई बांछे
ये बैरी मनवा सुध बुध खोता है
आखिर ऐसा क्यूँ होता है

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