Fursat ke pal

Fursat ke pal

Wednesday 26 February 2014

कविता बनायीं नहीं जाती
ना ही कविता लिखी जाती है
कविता बुनी जाती है
पल पल गुजरते अहसास को
शब्दों में फंदों सा पिरो कर
विभिन्न अलंकारों से सजा कर
भावों के रस में शब्द शब्द डुबा कर
बुना जाता है कविता रुपी स्वेटर
लो बुन दी मैने कविता
तुम पहन लो इसे गुनगुनाकर 

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