रोज मिलने आते हो
तुम मेरी खिड़की में
मुझसे मिलने
कभी दीखते हो दूर
तो कभी बिलकुल पास
कभी मासूम तो कभी शोख चंचल
कभी मायूस उदास
तुम हो सबसे अलग ...ख़ास
निहारती रह जाती हूँ मैं
तुम्हे अपलक
अच्छा लगता है
तुम्हारा यूँ मिलने आना
रोज मेरी खिड़की पर .
तुम मेरी खिड़की में
मुझसे मिलने
कभी दीखते हो दूर
तो कभी बिलकुल पास
कभी मासूम तो कभी शोख चंचल
कभी मायूस उदास
तुम हो सबसे अलग ...ख़ास
निहारती रह जाती हूँ मैं
तुम्हे अपलक
अच्छा लगता है
तुम्हारा यूँ मिलने आना
रोज मेरी खिड़की पर .
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