Fursat ke pal

Fursat ke pal

Thursday, 20 February 2014

रोज मिलने आते हो 
तुम मेरी खिड़की में 
मुझसे मिलने 
कभी दीखते हो दूर 
तो कभी बिलकुल पास 
कभी मासूम तो कभी शोख चंचल 
कभी मायूस उदास 
तुम हो सबसे अलग ...ख़ास 
निहारती रह जाती हूँ मैं 
तुम्हे अपलक 
अच्छा लगता है
तुम्हारा यूँ मिलने आना
रोज मेरी खिड़की पर .

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