Fursat ke pal

Fursat ke pal

Thursday 20 February 2014

जम गयी स्याही 
अकड़ गयी कलम 
हाथ हुए बेजान 
सर्दी बहुत है 
खिड़की से देखती हूँ 
दूर तक कोहरा है 
कुछ भी दिखाई नहीं देता 
इस धुएं के सिवा 
सोचा था कुछ लिखूंगी 
उड़ते हुए पक्षियों पर 
किन्तु आज की ठण्ड ने
पक्षियों को घोसले में ही
अल्कसाने को
मजबूर कर दिया
लिखूं तो लिखूं कैसे
मैं भी बैठी हूँ अलसाई सी
रजाई में दुबकी हुई
गुनगुनी धूप के इंतज़ार में

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