जम गयी स्याही
अकड़ गयी कलम
हाथ हुए बेजान
सर्दी बहुत है
खिड़की से देखती हूँ
दूर तक कोहरा है
कुछ भी दिखाई नहीं देता
इस धुएं के सिवा
सोचा था कुछ लिखूंगी
उड़ते हुए पक्षियों पर
किन्तु आज की ठण्ड ने
पक्षियों को घोसले में ही
अल्कसाने को
मजबूर कर दिया
लिखूं तो लिखूं कैसे
मैं भी बैठी हूँ अलसाई सी
रजाई में दुबकी हुई
गुनगुनी धूप के इंतज़ार में
अकड़ गयी कलम
हाथ हुए बेजान
सर्दी बहुत है
खिड़की से देखती हूँ
दूर तक कोहरा है
कुछ भी दिखाई नहीं देता
इस धुएं के सिवा
सोचा था कुछ लिखूंगी
उड़ते हुए पक्षियों पर
किन्तु आज की ठण्ड ने
पक्षियों को घोसले में ही
अल्कसाने को
मजबूर कर दिया
लिखूं तो लिखूं कैसे
मैं भी बैठी हूँ अलसाई सी
रजाई में दुबकी हुई
गुनगुनी धूप के इंतज़ार में
No comments:
Post a Comment