स्वप्न तुम देखते हो
और जागती हूँ मैं सारी रात
कैसा नाता है मेरा तुम्हारा
कभी तुम मुझे मन मंदिर में बसा लेते हो
कभी नाराज हो मुझसे खुद को चुरा लेते हो
सामने जब भी आते हो
शांत मासूम बच्चे से
जैसे मुझसे हो अनजान
तुम कितना भी छिपा लो खुद को पर मैं
मैं जानती हूँ तुम्हें
तुम्हारी हर अनकही
पहुँच जाती है मुझ तक
उसी शब्द सेतु के जरिये
जो तुम्हारे ख्यालों में तो हैं पर,
पर जुबाँ तक शायद कभी ना आये
तो लो आज मैं ही क्यों ना दे दूँ
इस अनाम रिश्ते को एक नाम
जो पनप रहा है
तुम्हारे और मेरे बीच
एक अरसे से तुम्हारी खामोशी में
तुम्हारे सपनो में , तुम्हारे खयालो में ...
और जागती हूँ मैं सारी रात
कैसा नाता है मेरा तुम्हारा
कभी तुम मुझे मन मंदिर में बसा लेते हो
कभी नाराज हो मुझसे खुद को चुरा लेते हो
सामने जब भी आते हो
शांत मासूम बच्चे से
जैसे मुझसे हो अनजान
तुम कितना भी छिपा लो खुद को पर मैं
मैं जानती हूँ तुम्हें
तुम्हारी हर अनकही
पहुँच जाती है मुझ तक
उसी शब्द सेतु के जरिये
जो तुम्हारे ख्यालों में तो हैं पर,
पर जुबाँ तक शायद कभी ना आये
तो लो आज मैं ही क्यों ना दे दूँ
इस अनाम रिश्ते को एक नाम
जो पनप रहा है
तुम्हारे और मेरे बीच
एक अरसे से तुम्हारी खामोशी में
तुम्हारे सपनो में , तुम्हारे खयालो में ...
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