Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 12 May 2012

मित्रों आज दिन में खाली थी तो पत्रिका में एक कहानी पढ़ी और उसी के आधार पर ये कविता लिखी ........

आज उसको देख , पुरानी कुछ बीती बातें
चलचित्र सी, मेरी बीती जिंदगी फिर से, सामने आयी
अनायास ही मेरे चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान ,
लेकिन फिर मायूसी सी छायी
याद आ गए, वो बीते लम्हे फिर से
जब वो मुझे छोड़ ,वादों का अम्बार लगा
जल्दी ही वापस आने को बोला था
समझ न पायी थी मैं उस छलिया को
क्योंकि मेरा अंतर्मन भोला था
दिन हफ़्तों महीनो इंतज़ार किया
वो फिर वापस ना आया था
मैंने यह एकाकी जीवन उसके कारण ही पाया था
आज वर्षों बाद देख उसको ,ये सब बीती बातें ताजा हो आयीं
किन्तु देख उसकी नन्हीं सी बिटिया को, मैं थी हलकी सी मुस्काई
पर चोर निगाहों से देख उसने मुझको
अनदेखा किया ऐसे, जैसे कोई पहचान नहीं
पहचान गयी फिर से फितरत को उसकी ,
अब थी उससे अनजान नहीं ,
रोष हुआ खुद पर ही क्यों मैं उससे मिलने आई ??
उलटे पाँव लौटी घर को ,और अपने वर्तमान में आई
घर पहुँच कर मैंने घर की घंटी बजायी
मेरे अन्दर जो द्वन्द था मैं थी उससे बाहर आई
दरवाजा खोल सामने पतिदेव खड़े थे
मैं अपने भावों को न रोक पायी
लिपटी उनसे, जैसे पहला मिलन हो संग अश्रु धरा बह आई
वो कुछ आश्चर्यचकित थे किन्तु खुश थे
आज उन्होंने मुझको पहली बार पाया था
मैंने भी दिल से पतिदेव को आज, पहली बार अपनाया था

______________अंजना चौहान ______________




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