Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday 6 May 2012

है थोड़ी बैचैनी पर किसी से कह भी ना पाऊं
अपना दुखड़ा जाकर मैं किसको सुनाऊं
भरी दुनिया में तनहा हूँ ,हर कोई खुद में ही गुम है
उलझाने इस ज़माने में किसी की ना कम हैं
जिसे भी देखो दिल उसका भारी और आँखें नम हैं
सोचती हूँ अपने गम बांटने से अच्छा औरों के ही गम बाँट लूँ
बदले में उनको थोड़ी ही सही पर मुस्कराहट दे दूँ
क्या मुमकिन यूँ ही थोडा थोडा करके सारी ही दुनिया मुस्करा दे
यूँ ही मिलजुलकर सब अपने ग़मों को भुला दें
चरों तरफ बस खुशहाली ही खुशहाली हो
बगिया को यूँ ही खिलाने वाले मेरे संग और कई माली हों
मुस्कराहटें फिर किसी की न कम हों
फिर किसी के हिस्से न कोई गम हो

______________अंजना चौहान ________________५/५/२०१२

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