Fursat ke pal

Fursat ke pal

Monday 14 May 2012

तेरे मेरे बीच की खाई को अक्सर
तुम्हारे ये शब्द सेतु पाट दिया करते थे
क्यूँ तुम्हारी कलम कुछ कहती नहीं आजकल, हैरान हूँ
तुम्हारे शब्दों से कई बार तुम्हारा अंतर्मन भी पढ़ लेती थी मैं
जीवन में जगह न भी दी तो क्या
तुम्हारे शब्दों के ताने बाने में मैं ही तो थी
तुम्हारे शब्दों से तुम्हारे इर्द गिर्द
खुद का वजूद सा समझ इसी में खुश थी मैं
फिर क्यों तुम्हारी कलम खामोश हो गयी
कई दिनों से तुम्हारा कोई पत्र न पा मन व्याकुल हुआ
पता चला तुम अब नहीं रहे
तुमसे तो तुम्हारी मजबूरियां पहले ही दूर कर चुकी थीं मुझे
ऐसा प्रतीत हुआ मानो
मैं खुद से भी आज दूर हो गयी प्रिये
एक तुम ही तो थे जो मुझे मेरे होने का अहसास दिलाते थे
तुम्हारे शब्द ही तो सहारा थे मेरे जीने का
फिर क्यों तुम कुछ लिखते नहीं अब मेरे लिए
इतनी दुखी तो मैं तब न थी जब तुमने
मुझे छोड़ किसी और को अपनाया था
मेरा हाथ छोड़ किसी और का हाथ थमा था
क्योंकि मैं जानती थी तुम न सही तुम्हारी रूह तो मेरे ही पास थी
खुद को समझा लिया था मैंने
लेकिन तुम तो हमेशा हमेशा के लिए
सो गए ऐसी नींद कभी न उठ पाने को
अब मैं अपना दुखड़ा कहूँ भी तो कहूँ किससे
सब अनजान है तेरे मेरे इस रिश्ते स

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