Fursat ke pal

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Tuesday, 15 May 2012


बहता निर्मल नीर नदिया का
मिटती प्यास जिससे सबकी है
खग नभ में विचरण करते हैं
धरती का वो मन हरते हैं
सूर्य अपनी किरने चमकाता
इस संसार को उज्जवल कर कर देता
चंदा नित्य निशा संग आता
अंधकार में अपनी शीतल चांदनी फैलाता
मीन नीर बिन रह नहीं पाए
वह जीवन जल ही में पाए
मयूर मुग्ध हो नृत्य दिखलाए
नृत्य से उसके उपवन सज जाए
समीर मंद मंद मुस्करा कर बहता
सबके मन को वो मोह लेता
मेघा घुमड़ घुमड़ कर बरसे
बहता निर्मल नीर नदिया का
मिटती प्यास जिससे सबकी है
खग नभ में विचरण करते हैं
धरती का वो मन हरते हैं
सूर्य अपनी किरने चमकाता
इस संसार को उज्जवल कर कर देता
चंदा नित्य निशा संग आता
अंधकार में अपनी शीतल चांदनी फैलाता
मीन नीर बिन रह नहीं पाए
वह जीवन जल ही में पाए
मयूर मुग्ध हो नृत्य दिखलाए
नृत्य से उसके उपवन सज जाए
समीर मंद मंद मुस्करा कर बहता
सबके मन को वो मोह लेता
मेघा घुमड़ घुमड़ कर बरसे
बावरा मोरा मन भीगने को तरसे

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