बहता निर्मल नीर नदिया का
मिटती प्यास जिससे सबकी है
खग नभ में विचरण करते हैं
धरती का वो मन हरते हैं
सूर्य अपनी किरने चमकाता
इस संसार को उज्जवल कर कर देता
चंदा नित्य निशा संग आता
अंधकार में अपनी शीतल चांदनी फैलाता
मीन नीर बिन रह नहीं पाए
वह जीवन जल ही में पाए
मयूर मुग्ध हो नृत्य दिखलाए
नृत्य से उसके उपवन सज जाए
समीर मंद मंद मुस्करा कर बहता
सबके मन को वो मोह लेता
मेघा घुमड़ घुमड़ कर बरसे
बहता निर्मल नीर नदिया का
मिटती प्यास जिससे सबकी है
खग नभ में विचरण करते हैं
धरती का वो मन हरते हैं
सूर्य अपनी किरने चमकाता
इस संसार को उज्जवल कर कर देता
चंदा नित्य निशा संग आता
अंधकार में अपनी शीतल चांदनी फैलाता
मीन नीर बिन रह नहीं पाए
वह जीवन जल ही में पाए
मयूर मुग्ध हो नृत्य दिखलाए
नृत्य से उसके उपवन सज जाए
समीर मंद मंद मुस्करा कर बहता
सबके मन को वो मोह लेता
मेघा घुमड़ घुमड़ कर बरसे
बावरा मोरा मन भीगने को तरसे
nice feeling, meaning full thoughts
ReplyDeleteबहुत सुंदर दीदी
ReplyDeletethanx bhaai
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletedhanyavaad sir
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