दूर कहीं इक कोने में
कुछ दर्द में डूबा हुआ
कुछ मायूस कुछ परेशां सा
वो खोया खोया सा भाव भ्रमित सा लगे
कुछ तड़पता सा है कुछ टुटा हुआ
दूर एक कोने में वो रोता हुआ बैठा हुआ
है कुछ लाचार सा
वेदना मिश्रित सा ,चेहरा से पीड़ा दिखे
अपने में ही खोया हुआ
भीड़ में भी तनहा दिखे
घुटनों में सर दे कर सुबकता हुआ
दूर एक कोने में वो मासूम बैठा हुआ
है अनाथ अनाम निरपराध सा
वो अपना सा लगे
अधुरा सा उसका कोई सपना लगे
जी चाहे अंजुली में रख उसके मुख को
पूछूँ कुछ तो कुछ पीड़ा बँटे
यूँ देख उसकी ओर देख मेरी भी पीड़ा बढे
दूर एक कोने में वो सिसकता हुआ
है कुछ अल्लढ़ सा कुछ नादान सा
है वो थोडा भोला भला सा
एक शून्य की ओर ताकता सा
है कुछ टीस उसके सीने में
वो निर्दोष निष्पाप लगे
दूर एक कोने में वो बैठा सुबकता हुआ
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