Fursat ke pal

Fursat ke pal

Tuesday, 15 May 2012


दूर कहीं इक कोने में
कुछ दर्द में डूबा हुआ
कुछ मायूस कुछ परेशां सा
वो खोया खोया सा भाव भ्रमित सा लगे
कुछ तड़पता सा है कुछ टुटा हुआ
दूर एक कोने में वो रोता हुआ बैठा हुआ

है कुछ लाचार सा
वेदना मिश्रित सा ,चेहरा से पीड़ा दिखे
अपने में ही खोया हुआ
भीड़ में भी तनहा दिखे
घुटनों में सर दे कर सुबकता हुआ
दूर एक कोने में वो मासूम बैठा हुआ

है अनाथ अनाम  निरपराध सा
वो  अपना सा लगे
अधुरा सा उसका कोई सपना लगे
जी चाहे अंजुली में रख उसके मुख को
पूछूँ कुछ तो कुछ पीड़ा बँटे
यूँ देख उसकी ओर देख मेरी भी पीड़ा बढे
दूर एक कोने में वो सिसकता हुआ

है कुछ अल्लढ़ सा कुछ नादान सा
है वो थोडा भोला भला सा
एक शून्य की ओर ताकता सा
है कुछ टीस उसके सीने में
वो निर्दोष निष्पाप लगे
दूर एक कोने में वो बैठा सुबकता हुआ

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