दर्द भरा मौसम है करूँ शिकवा शिकायत किससे
तेज आंधी में तो बड़े पेड़ भी जड़ से उखड जाते हैं
चोट खाके भी जीते हैं तो क्यों न जियें
मैं तो वो पेड़ हूँ जो हर आंधी में खड़े रह जाते हैं
घने कोहरे की चादर दूर तलक फैली है
हर धुंधली तस्वीर बस उसकी ही नज़र आती है
इन तस्वीरों में से उसकी तस्वीर उठाऊं कैसे
इस बिगड़े मौसम के मिजाज़ को मनाऊं कैसे
अब ये दिले दास्ताँ उसको बताऊँ कैसे
दो घडी रो लिया दिल टूटने पर मैं भी तो क्या
जलजले में तो बसे शहर भी उजड़ जाते हैं
मैं ना छोड़ू अपने ग़मों के निशाँ अपने पीछे
मैं वो दिया हूँ जो तेज हवाओं में भी जल जाते हैं
जिन्हें देखा था खुआबों में वो हकीकत में भी नज़र आते हैं
हम वो बदनसीब हैं जो मिलते ही बिछड जाते हैं
जो वो ना समझे मेरी वफ़ा को तो करूँ गिला किससे
ये वो दिल है जो जमी बर्फ में भी पिंघल जाता है
वो ढूंढ़ते हैं आंसुओं की लकीरों को हमारे चेहरे पर
पर ये वो आंसूं है जो बारिश के साथ में ही धुल जाते हैं
बहुत सुंदर अहसास !!
ReplyDeletethanx bhaai
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