Fursat ke pal

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Sunday, 6 May 2012

जीवन ...बस चलता जाता है
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जीवन कभी धूप छाँव तो कभी सवेरा
कभी तरह तरह के सवालों ने जमकर आ घेरा
कभी रेल की पटरी पर
पेसेंजर ट्रेन की तरह रुक रुक कर चलता
तो कभी राजधानी ट्रेन सा सरपट दौड़ता
कितने ही यात्री जैसे चढ़ते और उतरते हैं
वैसे ही कितने इस जीवन में जुड़े मिले और बिछड़े हैं
लेकिन वक्त का पहियाँ ही ऐसा
किसी के लिए नहीं रुकता बस चलता जाता है
रफ़्तार कभी धीमी कभी तेज
क्यों कोई कभी समझ ना पाता है ?
कभी सुगम तो कभी विषम
कभी ख़ुशी तो कभी गम
किन्तु रोके ये न रुक पाता है इसका काम है चलना
तो ये समय के साथ बस यूँ ही चलता जाता है
____________अंजना चौहान ____________१६/०४/२०१२

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