Fursat ke pal

Fursat ke pal

Monday, 21 May 2012

उसका स्पर्श पाते ही
प्रणय की धारा फूटी
बसंत ऋतु से बासन्ती
रंग में रंगी
वो प्रेयसी मेरी
स्पर्श पा उसका
अंग -अंग बोले
धड़कने बढ़ने लगीं
कामना के आगोश में
हो भाव विव्हल
कर चेतना के द्वार बंद
हम आलिंगन भर कर
प्रेयसी में डूब
कर रहे चिंतन
कैसे खो गए सयंम
करके उनका आलिंगन
ये वियोगी भी
डूब रहा
मधुमास में
समां रही वो
अंतर्मन में
इस छोर से उस छोर
उसका स्पर्श पाते ही

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