उसका स्पर्श पाते ही
प्रणय की धारा फूटी
बसंत ऋतु से बासन्ती
रंग में रंगी
वो प्रेयसी मेरी
स्पर्श पा उसका
अंग -अंग बोले
धड़कने बढ़ने लगीं
कामना के आगोश में
हो भाव विव्हल
कर चेतना के द्वार बंद
हम आलिंगन भर कर
प्रेयसी में डूब
कर रहे चिंतन
कैसे खो गए सयंम
करके उनका आलिंगन
ये वियोगी भी
डूब रहा
मधुमास में
समां रही वो
अंतर्मन में
इस छोर से उस छोर
उसका स्पर्श पाते ही
प्रणय की धारा फूटी
बसंत ऋतु से बासन्ती
रंग में रंगी
वो प्रेयसी मेरी
स्पर्श पा उसका
अंग -अंग बोले
धड़कने बढ़ने लगीं
कामना के आगोश में
हो भाव विव्हल
कर चेतना के द्वार बंद
हम आलिंगन भर कर
प्रेयसी में डूब
कर रहे चिंतन
कैसे खो गए सयंम
करके उनका आलिंगन
ये वियोगी भी
डूब रहा
मधुमास में
समां रही वो
अंतर्मन में
इस छोर से उस छोर
उसका स्पर्श पाते ही
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