Fursat ke pal

Fursat ke pal

Tuesday, 15 May 2012


मैं हूँ नागफनी ...
जो भी छु ले तो ...
सहस्त्रों काँटों सी .....
चुभ जाती हूँ ....
सब पौधों से जुदा न जाने क्यूँ
मैं बागीचे में एक अलग कोने में ही
जगह पाती हूँ
नहीं समझ पाती .....
ये बेरहम इंसान मुझसे
इतनी बेरुखी करता क्यूँ
मुझमें भी मासूमियत है
मैं भी फूल खिला सकती हूँ
मुझमें भी एक सुकोमल
अहसास पनपता है
हाँ मैं नागफनी हूँ
जिसमें कभी कभी फूल भी खिलता है
रंग बिरंगापन मैं भी जानती हूँ दिखलाना
जानती हूँ बागीचे को कई रंगों से सजाना
पर फिर भी व्यथा मेरी ....
ये मेरा माली .......
मुझे अन्य पौधों से जुदा रखता क्यूँ
हाँ मैं नागफनी हूँ .....
जिसमें कभी कभी
फूल भी खिलते हैं ......

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