Fursat ke pal

Fursat ke pal

Tuesday, 15 May 2012


धुप छाव सा मेरा जीवन
कभी नरम तो कभी गरम
कभी विस्तार पटल पर फैले से रिश्ते
तो कभी सिमट से आये रिश्तों में खुद को पाते हम
कैसे बीत चला था जीवन
बहुत सी जिम्मेदारी निभाने में
कैसे खुद को खो चुके थे हम
सब की खोई खुशियों को लौटने में
आइना देखा जब बालों में
हलकी सी सफेदी दी दिखलाई
उम्र दर उम्र कैसे बढती चली गयी
सोचा पर फिर भी समझ न पायी
अफ़सोस भी कर कर क्या होगा
जब लौट नहीं सकते वो पल
बचे खुचे जीवन को हमने
फिर अपने लिए ही जीने की सोची
लेकिन थे आदत से मजबूर
तो वो सोच भी क्यूँ कर पूरी होती
बस यही सोचते सोचते
मैं यादों के झरोखे से बाहर आई
सामने जिम्मेदारी खड़ी थी मुंह बाए

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