Fursat ke pal

Fursat ke pal

Monday, 14 May 2012

जब आँगन में गौरैय्या (चिड़िया)चीं चीं करती आती थी
अब बीते कल की बात हुई
प्यारा सा नन्हा सा वो घोंसला जो बागीचे में वो बनती थी
अब बीते कल की बात हुई
नहीं दीखते अब वो नन्हे चूजे जो अन्डो को फोड़ निकल कर आते थे
"वो द्रश्य अब स्वप्नों की बात हुई "
जब चिडिया को चूजे को चोंच से दाना खिलाते देखा करते थे
दूर दूर तक उड़ कर चिड़िया दाना चुग कर लाती थी
अब वो यादों की बात हुई
सुबह सुबह की चिड़िया की मधुर ध्वनि धीरे धीरे विलुप्त हुई जाती है
प्रकृति की ये अनमोल धरोहरे खोते हुए मानव को क्यूँ शर्म नहीं आती है
याद आता है चिड़िया का रेत के ढेर पर मस्ती करते देखना
कभी याद आता है दाना डालते ही चिड़िया का झुरमुठ उस पर मंडराना
क्यूँ हम इन्हें सहेजने में असमर्थ हुए जाते हैं
अपने निज स्वार्थ में लग हम सब कुछ अनदेखा कर जाते हैं
कब समझेगा मानुष कि पक्षी को भी घरोंदा चाहिए
रोक लगा दो पेड़ों के काटने पर अब कोई भी पेड़ न कटना चाहिए

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