Fursat ke pal

Fursat ke pal

Monday, 14 May 2012

क्यों भूल गए तुम उन लम्हों को
जब हम पहरों एक दूजे संग
हंसते खिलखिलाते बिताया करते थे
कैसे हो जाती थी सुबह से शाम
भूल जाया करते थे
कभी तुम आते थे मुझको लेने
और कभी मिलने के
खूब बहाने बनाया करते थे
पीछे छूट गए वो बीते लम्हें वो अल्ल्हड़ पन
तुझ संग बीते करते हंसी ठिठोली
आज देखती हूँ पीछे मुड़ तो बस यादें ही बाकी हैं
क्यों कहा था तुमने तब मुझसे
हम जन्मो जन्मो के साथी है
अकेला जीवन कैसे बिताऊं तनहा
यही सोच कर दिल घबराता है
तू न सही पर तेरी यादों संग ही सही
अब मेरा गहरा नाता है

साथ ही तुम मुझको भी ले जाते अपने
ये एकाकी जीवन अब ........और न काटा जाता है
प्रिये अब और न काटा जाता है ....................

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