आ जाओ कान्हा अंगना में मोरे तुम प्रेम सुधा बरसाने को
रंगूँ प्रीत में मैं भी तुझ संग राधा सी इस जग को लुभाने को
वृन्दावन की गलियों में तेरा भोल बचपन बीता था
गोपियों संग राधा ने यह निश्छल प्रेम तुझसे ही सीखा था
वृन्दावन आकर तेरे चरणों में जो भी शीश नवाते हैं
भूल भाल कर सुध बुध अपनी बस तुझमें ही खो जाते हैं
श्यामल रूप निहार कर तेरा सब मंत्रमुग्ध हो जाते हैं
_________अंजना चौहान ___________
रंगूँ प्रीत में मैं भी तुझ संग राधा सी इस जग को लुभाने को
वृन्दावन की गलियों में तेरा भोल बचपन बीता था
गोपियों संग राधा ने यह निश्छल प्रेम तुझसे ही सीखा था
वृन्दावन आकर तेरे चरणों में जो भी शीश नवाते हैं
भूल भाल कर सुध बुध अपनी बस तुझमें ही खो जाते हैं
श्यामल रूप निहार कर तेरा सब मंत्रमुग्ध हो जाते हैं
_________अंजना चौहान ___________
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