Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday, 13 May 2012

आ जाओ कान्हा अंगना में मोरे तुम प्रेम सुधा बरसाने को
रंगूँ प्रीत में मैं भी तुझ संग राधा सी इस जग को लुभाने को
वृन्दावन की गलियों में तेरा भोल बचपन बीता था
गोपियों संग राधा ने यह निश्छल प्रेम तुझसे ही सीखा था
वृन्दावन आकर तेरे चरणों में जो भी शीश नवाते हैं
भूल भाल कर सुध बुध अपनी बस तुझमें ही खो जाते हैं
श्यामल रूप निहार कर तेरा सब मंत्रमुग्ध हो जाते हैं
_________अंजना चौहान ___________

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