Fursat ke pal

Fursat ke pal

Thursday, 10 May 2012

आ तरुअर की छाँव में दोनों बैठ बतियाएं
कैसे बीता लड़कपन संग में आ बीते पलों को गुन जाएँ
तेरी एक झलक पाने को मैं पहरों इंतज़ार किया करता था
जो तुम न आती थीं मिलने प्रिये तो मैं बैचैन हुआ करता था
तेरी मजबूरी को समझ दिल को अपने समझा लेता था
तेरी एक झलक पाकर ही मैं बस तुझको पूरा पा लेता था
संग बिताये तुझ संग उन पलों की बातें आज भी ,
ऐसी लगतीं मनो कल ही की बात हो
तेरे मेरे प्यार का बंधन ऐसा जैसे जन्मों का साथ हो
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हाँ प्रिय मैं भी बमुश्किल ही तन्हाई पाती थी
घर वालों की नज़रों से छुप तुमसे मिलने आती थी
अहसास प्यार का मुझमें भी था पर कहने से शर्माती थी
दुनिया की तीखी नज़रों से मैं थोडा डर जाती थी
किन्तु अब नादाँ नहीं हूँ कह सकती हूँ ,
मैं तुमको ही चाहती हूँ ,
परिवार की परम्पराओं संग चल ,फेरे ले पवित्र अग्नि के
आओ तुम संग विवाह बंधन में बांध जाती हूँ
गर तुमको मंजूर हो प्रस्ताव मेरा तो दर पर मेरे
सहनाई संग बारात लेकर आ जाना
घर वालों से हाथ मांगकर मेरा डोली अपने घर ले जाना
_______________अंजना चौहान __________________


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