जिंदगी है कैसी मकड़ जाल सी
कभी उलझी तो कभी सुलझी
कभी है दुश्मन तो कभी सहेली
कभी खुली किताब तो है कभी पहेली
कभी प्रश्नसूचक सी सवाल उठाती
कभी खुद ही खुद सारे उत्तर बताती
अनुभव बहुत फिर भी रोज ही उलझ जाती
विचारों का ताना बना मैं बस रोज यूँ ही बुनती जाती
जिंदगी "थान" सी मैं रोज तह कर लगाती
जितना समेटूं फिर भी फैला ही पाती
जिंदगी कभी खिला गुलाब
कभी "सिर्फ" काँटों का साथ
कभी नागवार तो कभी खुशगवार
अभी है मासूम तो कभी यौवन से भरपूर
हाँ ये जिंदगी है बस ये मकड़ जाल सी
.......एक अबूझ पहेली ....
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