Fursat ke pal

Fursat ke pal

Friday, 18 May 2012


जिंदगी है कैसी मकड़ जाल सी 
कभी उलझी तो कभी सुलझी 
कभी है दुश्मन तो कभी सहेली 
कभी खुली किताब तो है कभी पहेली 
कभी प्रश्नसूचक सी सवाल उठाती
कभी खुद ही खुद सारे उत्तर बताती
अनुभव बहुत फिर भी रोज ही उलझ जाती
विचारों का ताना बना मैं बस रोज यूँ ही बुनती जाती 
जिंदगी "थान" सी  मैं रोज तह कर लगाती 
जितना समेटूं फिर भी फैला ही पाती 
जिंदगी कभी खिला गुलाब
कभी "सिर्फ" काँटों का साथ 
कभी नागवार तो कभी खुशगवार 
अभी है मासूम तो कभी यौवन से भरपूर 
हाँ ये जिंदगी है बस ये मकड़ जाल सी 
.......एक अबूझ पहेली ....

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