आँखे मूंद बैठ कुर्सी पर
सपने देखे ये निश्छल मन
कितने ही निश्चय अनिश्चय
घुमड़ रहे कितने ख्याल
गाये जा रहे गीत बन्नी के
पड़ रही ढोलक पर थाप
बन्नी सोच रही मन में
कैसे जाऊं मैं ससुराल
क्या सच होंगे सपने मेरे
जो देखे मैंने थे सखियों संग
क्या मिलेगा मुझको
नित नूतन प्यार
नित नूतन आनंद
क्या उठाएंगे वो भी घूँघट मेरा
क्या करेंगे वो भी मेरा आलिंगन
क्या चहक उठेंगे वो भी स्पर्श पा मेरा
क्या देंगे वो फिर मीठा चुम्बन
क्या फिर अपनी बाहों में भर वो मुझको
क्या करेंगे वो मेरा स्पर्श तन
क्या संग मिल कर सपने देखेंगे
क्या पायेंगे अपुल्कित आनंद
आँखे मूंद बैठ कुर्सी पर
सपने देखे ये निश्छल मन -------
सपने देखे ये निश्छल मन
कितने ही निश्चय अनिश्चय
घुमड़ रहे कितने ख्याल
गाये जा रहे गीत बन्नी के
पड़ रही ढोलक पर थाप
बन्नी सोच रही मन में
कैसे जाऊं मैं ससुराल
क्या सच होंगे सपने मेरे
जो देखे मैंने थे सखियों संग
क्या मिलेगा मुझको
नित नूतन प्यार
नित नूतन आनंद
क्या उठाएंगे वो भी घूँघट मेरा
क्या करेंगे वो भी मेरा आलिंगन
क्या चहक उठेंगे वो भी स्पर्श पा मेरा
क्या देंगे वो फिर मीठा चुम्बन
क्या फिर अपनी बाहों में भर वो मुझको
क्या करेंगे वो मेरा स्पर्श तन
क्या संग मिल कर सपने देखेंगे
क्या पायेंगे अपुल्कित आनंद
आँखे मूंद बैठ कुर्सी पर
सपने देखे ये निश्छल मन -------
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