Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday, 13 May 2012

आँखे मूंद बैठ कुर्सी पर
सपने देखे ये निश्छल मन

कितने ही निश्चय अनिश्चय
घुमड़ रहे कितने ख्याल
गाये जा रहे गीत बन्नी के
पड़ रही ढोलक पर थाप
बन्नी सोच रही मन में
कैसे जाऊं मैं ससुराल
क्या सच होंगे सपने मेरे
जो देखे मैंने थे सखियों संग
क्या मिलेगा मुझको
नित नूतन प्यार
नित नूतन आनंद
क्या उठाएंगे वो भी घूँघट मेरा
क्या करेंगे वो भी मेरा आलिंगन
क्या चहक उठेंगे वो भी स्पर्श पा मेरा
क्या देंगे वो फिर मीठा चुम्बन
क्या फिर अपनी बाहों में भर वो मुझको
क्या करेंगे वो मेरा स्पर्श तन
क्या संग मिल कर सपने देखेंगे
क्या पायेंगे अपुल्कित आनंद
आँखे मूंद बैठ कुर्सी पर
सपने देखे ये निश्छल मन -------

No comments:

Post a Comment