Fursat ke pal

Fursat ke pal

Sunday, 6 May 2012

विषय ...बुजुर्गों की अनदेखी
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मैं आज भी दृढ खड़ा हूँ अशोक स्तम्भ सा
इन हड्डियों में आज भी नौजवानों सी जान बाकी है
जो मुंह फेर कर चल दिए तुम मुझको छोड़
कभी पाला था इन्हीं दो हाथों से तुमको
जीवन कैसे जिया जाता है सिखलाया था अपनी बातों से
शायद मेरी शिक्षा में ही कुछ कमी है
जो संतान को आदर सम्मान न सिखा पाया
जीर्ण शीर्ण निर्बल काया समझ छोड़ गए मुझको क्यूँ
क्यूँ तुमको लाज नहीं आती
कभी तुम्हारा भी ऐसा हश्र हो सकता है
मेरी जीवनी क्या ये नहीं सिखलाती
दम आज भी बाकी है इन बूढी हड्डियों में
सक्षम हैं खुद का निर्वाह करने में
अपना खून जब धिक्कारता है तब चोट गहरे लगती है
वक्त के थपेड़ो की ऐसी भी मार सहनी पड़ती है
कुछ अपने जैसे ही अपनों के मारों संग मिल एक नया नीड़ बसाऊंगा
सबके संग बाटूंगा खुशियाँ उनकी लौटी खुशियाँ वापस लाऊंगा
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क्यों भूल जाते हैं बच्चे
ये भी उसी अवस्था से गुजरेंगे
बीते पल लौट नहीं सकते हैं वापस
जब ये खुद भुगतेंगे तब ही सुधरेंगे 

1 comment:

  1. बहुत खूब अंजना जी .........गजब का लिखती है आप मुझे आप पर गर्व है सखी ............आप को बहुत बहुत मुबारक हो.

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