कौन करेगा अब इस घर को पावन
कौन झूलेगा बगिया में जब आये सावन
कौन खायेगा माँ के हाथ का पहला टुकड़ा
भोर होने पर पिता देखेंगे किसका प्यारा मुखड़ा
लगा माथे पर उसके नन्हीं बिंदिया
थाप देतीं माँ उसको जब आती निंदिया
ठुमक ठुमक चलती तो पिता बजाते ताली
लगता कुछ ऐसा जैसे हो कोई बगिया का माली
फूल खिले और माली उसको लगे निहारने
मेहनत कर लगे माता पिता बिटिया का बचपन संवारने
कैसे बिटिया बड़ी हुई हो आई सायानी
लगा बीतने बचपन तो विवाह की ठानी
सोचा मिले उसे इक घर अपना सा प्यारा
मिले अपनों का प्यार उसे और
करे वो उस घर को भी उजियारा
कौन कहेगा जब पिता जायेंगे ऑफिस -टाटा
कौन करेगा शिकायत आने पर माँ की ,
पापा माँ ने आज बहुत डांटा
किसके गiलों पर करेगी माँ प्यार, से चुम्बन प्यारा
जब भी होगी विदा लाडली घर, से बहेगी अश्रु धiरा
माथे पर बिंदिया ,मांग में सुहाग की लाली
दमक रही है उसके कानों में बाली
हाथों में हैं खनक रहीं चूडियाँ प्यारी
और पैरों में हैं बज रही पायल भारी
शादी के जोड़े में सज वह ससुराल चली
पीछे अपने बचपन की यादें छोड़ चली
फिर आ रही याद उसकी तुतलाती बोली
वो देखो सज रही आज उसकी डोली
सदा रहे सर पर हाथ माता पिता का
तू सदा ऐसे ही काम करना
जैसे रहा तुझसे ये घर उजियारा
उस घर को भी उजियारा रखना
और अंत में है बस मेरा इतना कहना
बेटे से बढ़ कर है नहीं कोई अनमोल रत्न
और नहीं बेटी से बढ़ कर कोई प्यारा गहना