Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 27 October 2012

तुम बसते हो मेरे शब्दों में 
इन हवाओं में तुम बसते हो 
तुम बसते हो मेरी साँसों में 
मेरी रूह में तुम बसते हो 
तुम बसते हो मेरे दर्द में

मेरे ग़मों में आकर
तुम हौले से मुस्कुराते हो
तो उस एक क्षण में
मैं कई जन्मों की
ख़ुशी पा जाती हूँ
तुम बसते हो मेरे हर अंग अंग में
मेरी हर फिजा में तुम ही बसते हो

तुम बसते हो मेरी हर सोच में
जिसका आदि भी तुम
और अंत भी तुम
मेरे इस जहां में तुम
मेरे चारों तरफ
बस तुम ही तुम बसते हो
इस जन्म में तुम हर जन्म में तुम
बस तुम ही तुम ||

No comments:

Post a Comment