Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 27 October 2012


हूँ कवि तो करूँ कल्पना साकार
अपने भावों को दूँ आकर
मैं बन पखेरुं उड़ू नील गगन में
निहारूं अद्वितीय वसुंधरा का संसार
करूँ आभार त्रिलोचन का
जिसने दिया प्रकृति को सौंदर्य अपार
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार

बन चकोर करूँ चितवन चंचल मयंक का
दूँ घन के उपर डेरा डाल
कैसे रोज घटे बढे है ये
मै भी देखू इसका कमाल
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार .............

इस जग को उजियारा कर दूँ
न हो किसी की दुनियां में अन्धकार
रति भर जोती जलूं बन बाति
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ............

हे प्रभु दे इतना अपार
बनू धनवान तो गरीब निकाजुं
निराक्षर को करूँ साक्षर
न करे कोई किसी का तिरस्कार
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ...............

बन कुसुम महकाऊ उपवन
बिखेरूं खुशबू इस जग में केवड़ा बन
न हो कोई उदास न हो निराश
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ........

न हो वैमनस्य न हो द्वेष
दूर हो ये ऊँच नीच
माँगू हरी से सब करे संभव
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ................

बस यूँ ही मद मस्त रहूँ मैं
करूँ कारवां अपने साथ
साथ करूँ नित्य प्रति उपासना प्रभु की
न दे स्वार्थ ,अहं,छल मुझे कभी
बनू निर्विकार, सद्चरित्र ,सत्यवादी
बस इतनी सी मेरी अभिलाषा

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