हूँ कवि तो करूँ कल्पना साकार
अपने भावों को दूँ आकर
मैं बन पखेरुं उड़ू नील गगन में
निहारूं अद्वितीय वसुंधरा का संसार
करूँ आभार त्रिलोचन का
अपने भावों को दूँ आकर
मैं बन पखेरुं उड़ू नील गगन में
निहारूं अद्वितीय वसुंधरा का संसार
करूँ आभार त्रिलोचन का
जिसने दिया प्रकृति को सौंदर्य अपार
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार
बन चकोर करूँ चितवन चंचल मयंक का
दूँ घन के उपर डेरा डाल
कैसे रोज घटे बढे है ये
मै भी देखू इसका कमाल
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार .............
इस जग को उजियारा कर दूँ
न हो किसी की दुनियां में अन्धकार
रति भर जोती जलूं बन बाति
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ............
हे प्रभु दे इतना अपार
बनू धनवान तो गरीब निकाजुं
निराक्षर को करूँ साक्षर
न करे कोई किसी का तिरस्कार
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ...............
बन कुसुम महकाऊ उपवन
बिखेरूं खुशबू इस जग में केवड़ा बन
न हो कोई उदास न हो निराश
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ........
न हो वैमनस्य न हो द्वेष
दूर हो ये ऊँच नीच
माँगू हरी से सब करे संभव
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ................
बस यूँ ही मद मस्त रहूँ मैं
करूँ कारवां अपने साथ
साथ करूँ नित्य प्रति उपासना प्रभु की
न दे स्वार्थ ,अहं,छल मुझे कभी
बनू निर्विकार, सद्चरित्र ,सत्यवादी
बस इतनी सी मेरी अभिलाषा
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार
बन चकोर करूँ चितवन चंचल मयंक का
दूँ घन के उपर डेरा डाल
कैसे रोज घटे बढे है ये
मै भी देखू इसका कमाल
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार .............
इस जग को उजियारा कर दूँ
न हो किसी की दुनियां में अन्धकार
रति भर जोती जलूं बन बाति
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ............
हे प्रभु दे इतना अपार
बनू धनवान तो गरीब निकाजुं
निराक्षर को करूँ साक्षर
न करे कोई किसी का तिरस्कार
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ...............
बन कुसुम महकाऊ उपवन
बिखेरूं खुशबू इस जग में केवड़ा बन
न हो कोई उदास न हो निराश
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ........
न हो वैमनस्य न हो द्वेष
दूर हो ये ऊँच नीच
माँगू हरी से सब करे संभव
बस यही है मेरी अभिलाषा
अपनी कल्पना को करूँ साकार ................
बस यूँ ही मद मस्त रहूँ मैं
करूँ कारवां अपने साथ
साथ करूँ नित्य प्रति उपासना प्रभु की
न दे स्वार्थ ,अहं,छल मुझे कभी
बनू निर्विकार, सद्चरित्र ,सत्यवादी
बस इतनी सी मेरी अभिलाषा
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