इस धरा का श्रृंगार कर
इसे सहेज संवार कर
सहेज इस प्रकृति को
तू इसे ही प्यार कर
इसे सहेज संवार कर
सहेज इस प्रकृति को
तू इसे ही प्यार कर
निज स्वार्थ की खातिर
जब यह सौन्दर्य ख़त्म किया
क्यों तूने जरा भी सोचा नहीं
हाय ये तूने क्या किया
कितने पंछियों का घर उजड़ा तूने
कितने वृक्षों को काट कर
कितने ही घर बना डाले
नदियों को भी पाट कर
याद रख प्रकृति जब
विनाश लीला खेलती है
नष्ट हो जाता है सब
पल भर के ही खेल में
कितने ही घर बह जाते हैं पल में
जब नदी आती है उफान पर
कितने ही घर ढह जाते हैं
हिलती है जब धरती जलजले के रूप में
तो याद रख बस याद रख
प्रकृति के साथ खेलना नहीं
सहेज इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए
अब इसे और छेड़ना नहीं
जब यह सौन्दर्य ख़त्म किया
क्यों तूने जरा भी सोचा नहीं
हाय ये तूने क्या किया
कितने पंछियों का घर उजड़ा तूने
कितने वृक्षों को काट कर
कितने ही घर बना डाले
नदियों को भी पाट कर
याद रख प्रकृति जब
विनाश लीला खेलती है
नष्ट हो जाता है सब
पल भर के ही खेल में
कितने ही घर बह जाते हैं पल में
जब नदी आती है उफान पर
कितने ही घर ढह जाते हैं
हिलती है जब धरती जलजले के रूप में
तो याद रख बस याद रख
प्रकृति के साथ खेलना नहीं
सहेज इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए
अब इसे और छेड़ना नहीं
No comments:
Post a Comment