Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 27 October 2012

जी चाहे उड़ जाऊं अम्बर में ऊँचे ....
मुमकिन है क्या बिन पंख उड़ पाना ....
भावनाओं की उड़ान है मेरी ,
चाहे जितना भी ऊपर उड़ जाऊं ...
है कठिन सोच को हकीकत बनाना... 
पर सोच है की मानती ही नहीं ,
है मुश्किल इस सोच को रोक पाना ....
ना उम्मीद होकर भी ,
उम्मीदों का दिया जलाया हमने ....
क्या मुमकिन है फिर ...
इस जलती लौ को बुझाना ....
हम रोज ही तेल देते हैं ,
दिए को अपनी उम्मीदों का ...
लौ करती उजियारा आने वाले पलों में
प्रयास हो सार्थक और भरोसा हो खुद पर
तो नामुमकिन नहीं खुद को ऊपर उठाना

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