Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday, 27 October 2012

आप बीती 
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इस फेस बुक का मुझको भी चढ़ गया बुखार 
इसके चक्कर में पड़ सब घूमना फिरना हो गया बेकार 
पतिदेव कहते हैं बीवी इन फेस्बुकी चेहरों से बाज आ जाओ 
जीता जगता चेहरा जब सामने है तो थोडा इसमें भी मन रमाओ
कोई ना आएगा काम तुम्हारे देखना एक दिन मुंह की खाओगी
जब कोई करेगा बातें उलटी सीधी तब तुम बड़ा पछताओगी
हम भी कहाँ मानने वाले थे अपनी आदत से बाज ना आये
जैसे ही जाते पतिदेव दफ्तर हम भी झट से फेस बुक देते लगाये
पूरे दिन इस पर अपना मजमा जम जाता है
कभी होती है पोस्ट कविता तो कभी कमेन्ट पर ध्यान आ जाता है
जब से इसके सामने बैठना ज्यादा हुआ कई किलो वजन बढाया है
एक बार गुस्सा कर पतिदेव को, अपना फोन और लैपटॉप भी तुड़वाया है
सारे नंबर उड़नछू हो गए बड़ी हुई परेशानी
यही सोच हमने भी इस बार ब्लेक बेरी छोड़
कोई सस्ता सेट लेने की ठानी
हम ले आये हैं अब एक सस्ता और टिकाऊ सेट
क्योंकि अब फेक बुक हमसे न छूटेगा
चाहे मारें गुस्से में पटक कितनी ही बार
पर सेट सस्ता ही टूटेगा

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