Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday, 27 October 2012

कौन करेगा अब इस घर को पावन 
कौन झूलेगा बगिया में जब आये सावन 
कौन खायेगा माँ के हाथ का पहला टुकड़ा 
भोर होने पर पिता देखेंगे किसका प्यारा मुखड़ा 

लगा माथे पर उसके नन्हीं बिंदिया
थाप देतीं माँ उसको जब आती निंदिया
ठुमक ठुमक चलती तो पिता बजाते ताली
लगता कुछ ऐसा जैसे हो कोई बगिया का माली
फूल खिले और माली उसको लगे निहारने
मेहनत कर लगे माता पिता बिटिया का बचपन संवारने


कैसे बिटिया बड़ी हुई हो आई सायानी
लगा बीतने बचपन तो विवाह की ठानी
सोचा मिले उसे इक घर अपना सा प्यारा
मिले अपनों का प्यार उसे और
करे वो उस घर को भी उजियारा


कौन कहेगा जब पिता जायेंगे ऑफिस -टाटा
कौन करेगा शिकायत आने पर माँ की ,
पापा माँ ने आज बहुत डांटा
किसके गiलों पर करेगी माँ प्यार, से चुम्बन प्यारा
जब भी होगी विदा लाडली घर, से बहेगी अश्रु धiरा


माथे पर बिंदिया ,मांग में सुहाग की लाली
दमक रही है उसके कानों में बाली
हाथों में हैं खनक रहीं चूडियाँ प्यारी
और पैरों में हैं बज रही पायल भारी

शादी के जोड़े में सज वह ससुराल चली
पीछे अपने बचपन की यादें छोड़ चली
फिर आ रही याद उसकी तुतलाती बोली
वो देखो सज रही आज उसकी डोली

सदा रहे सर पर हाथ माता पिता का
तू सदा ऐसे ही काम करना
जैसे रहा तुझसे ये घर उजियारा
उस घर को भी उजियारा रखना

और अंत में है बस मेरा इतना कहना

बेटे से बढ़ कर है नहीं कोई अनमोल रत्न
और नहीं बेटी से बढ़ कर कोई प्यारा गहना

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