Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 27 October 2012

मुझे मुर्दों से डर नहीं लगता मैं शमशान का रखवाला हूँ 
मुझे आग से डर नहीं लगता मैं रोज मुर्दों को आग के हवाले करने वाला हूँ 
हड्डियों के बुतों को देख मैं कैसे डर सकता हूँ जब ,
मैं रोज हड्डिया चुनवाने वाला हूँ
इंसान इस संसार में रोते हुए जन्म लेता है ,
लेकिन जब जाता है सबको रुला जाता है
ये दुनियाँ कभी जज्बाती तो कभी मतलबी होती है बहुत
जज़्बात क्या होते हैं यह मैं जान कर भी जानना नहीं चाहता
क्योंकि कितने ही लोगों को मैंने यहाँ जलते देखा
जलते वक़्त उनके रिश्तेदारों को बिलखते देखा, किन्तु
शरीर जलकर राख भी न हो पाए, मैंने उनको आपस में झगड़ते भी यहीं देखा है
अगर जज्बात ऐसे होते हैं..........तो नहीं चाहिए
अगर रिश्तेदार ऐसे होते हैं .......तो नहीं चाहिए
मैं खुश हूँ अपनी जगह अपने काम से
कम से कम कुछ तो अच्छा काम करता हूँ
शरीर की इस मोह माया को ख़त्म करवाता हूँ

मैं शमशान का पहरेदार हूँ ......... मैं मुर्दों को जलवाता हूँ

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