हे मानुष !
न हो विस्मित व्याकुल
ना भाग विकट परिस्थितियों से डरकर
ये दिनकर आँख मिचोली खेले
रख धैर्य कर इन्तजार
—न हो विस्मित व्याकुल
ना भाग विकट परिस्थितियों से डरकर
ये दिनकर आँख मिचोली खेले
रख धैर्य कर इन्तजार
इस रजनी के गुज़र जाने का
चल सही डगर पर मत बिचल
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
इस अरुणोदय के आने से दूर अन्धकार होगा
ना हो निराश ना ही उदास
ना कर विलाप ना ही संताप
ना धीर अधीर ना व्याकुल हो
इस दिनकर को कोई मेघ ना कभी ढक पाया है
रख धेर्य पौ फटने का
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
तू बन कर्मठ दूरदर्शी बन
अथक परिश्रम ही सफलता की कुंजी
श्रम साध्य ही शिरोधार्य है
आलसी कब सफल हो पाया है
पहचान उसे जो अन्तार्निहित तुझमें
नहीं सुलभ है मार्ग सफलता का
न डिगा विश्वास प्रभु पर से तू
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
तू हो कृतज्ञ इश्वर का
जो दिया जन्म मनुष्य का
इस जन्म को तू यूँ ही व्यर्थ न कर
नहीं असाध्य कोई कार्य है
तू पहचान उसे जो तेरा अंतर्ज्ञान
नित अनुयायी अनुचर अनुगामी बना
नहीं सुगम है डगर सफलता की
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
चल सही डगर पर मत बिचल
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
इस अरुणोदय के आने से दूर अन्धकार होगा
ना हो निराश ना ही उदास
ना कर विलाप ना ही संताप
ना धीर अधीर ना व्याकुल हो
इस दिनकर को कोई मेघ ना कभी ढक पाया है
रख धेर्य पौ फटने का
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
तू बन कर्मठ दूरदर्शी बन
अथक परिश्रम ही सफलता की कुंजी
श्रम साध्य ही शिरोधार्य है
आलसी कब सफल हो पाया है
पहचान उसे जो अन्तार्निहित तुझमें
नहीं सुलभ है मार्ग सफलता का
न डिगा विश्वास प्रभु पर से तू
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
तू हो कृतज्ञ इश्वर का
जो दिया जन्म मनुष्य का
इस जन्म को तू यूँ ही व्यर्थ न कर
नहीं असाध्य कोई कार्य है
तू पहचान उसे जो तेरा अंतर्ज्ञान
नित अनुयायी अनुचर अनुगामी बना
नहीं सुगम है डगर सफलता की
बस ठहर ठहर कुछ देर ठहर
सवेरा होगा
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