Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 27 October 2012


प्रकृति का सौन्दर्य अनूठा
प्रकृति की छठा निराली है
पहाड़ों की इन वादियों की कथा सुनाने वाली है
पानी के सोतों की निर्मल धारा
यूँ ही चलते फिरते मिल जाती है
पर्वतों की गोद से निकलती निर्मल धारा
स्वछंद निर्झर बहती जाती हैं
भव्य श्री बद्री श्री केदार यहाँ के
देश के तीर्थ स्थल कहलाते हैं
गंगोत्री यमनोत्री इन्ही के संग
चार धामों में गिने जाते हैं
यही से बहती माँ गंगे
उत्तरांचल को पूरे
जगत में पहचान दिलाती है
हरिद्वार ऋषिकेश पवित्र नगरी के
नाम से पहचान पाती हैं
इन्हीं वादियों में बीता था बचपन
यहीं हंसी ठिठोली करते थे
यहीं पर हम खेला कूदा करते थे
और इन्ही खेतों में चढ़ते और उतरते थे
कठिन था जीवन किन्तु सरस था
माँ की वो ममतामय छाव श्रद्रस था
अब भी जब याद आता है
मेरा गाव.........
मुझे बुलाता है __

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