Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday, 27 October 2012

एक पतली सी पगडण्डी 
ऊँचे नीचे रास्तों पर 
कहीं सीधी तो कहीं बलखाती
कहीं आड़ी तिरछी रेखाओं सी खिची 
जहां सड़क नहीं वहां आज भी 
यही पहुंचाती गंतव्य तक
एक पतली सी पगडण्डी
पहाड़ी स्थान और जगह सुनसान
कठिन जीवन जंगल बियावान
कहीं नहीं विकास का नाम
भागती दौड़ती जिंदगी से यहाँ आज भी अनजान
आज भी दूर से पानी भर कर लाना
पैदल ही मीलों रास्ता तय कर जाना
इसी पगडण्डी से अपनों से जुड़ जाना
ये पगडण्डी आड़ी तिरछी रेखाओं सी खिंची
रास्ते के नाम पर एक मात्र पहचान
यहाँ न गाड़ियों का शोर ना ही प्रदूषण
ना ही यहाँ किसी को होती टेंशन
लोग सोते आराम से लम्बी चादर तान
बस यही एक पगडण्डी अपनों से जोड़ने का
एक मात्र साधन ...जिस पर लोग ढोते साजो सामान

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