Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday, 27 October 2012


बिखरना मैंने सीखा नहीं
पिघलना मैंने सीखा नहीं

टकरा जाऊँगी किसी से भी अपने अधिकार कि खातिर
डरना मैंने सीखा नहीं
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
अकारण किसी से झगड़ना मैंने सीखा नहीं
संस्कारों और मर्यादाओं का बंधन मुझे प्यारा है
पराये को पाने कि चाह में गिरना मैंने सीखा नहीं
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
संभल कर चलना मैं जानती हूँ
आत्मविश्वास से भरी आत्मनिर्भर हूँ मैं
डरना मैंने सीखा नहीं
डोर हूँ रिश्तों की
रिश्तों को डोर में पिरो कर रखना जानती हूँ
परिवार का महत्त्व क्या होता है मैं बखूबी पहचानती हूँ
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
सशक्त ,समस्याओं से जूझती और उबरती हुई
परिवार के लिए मर मिटना मैं जानती हूँ
हौसले से भरी
नाकामियों को शिकस्त देना मेरा काम है
पस्त होना मैंने सिखा नहीं
चोट खाने कि आदत है सिहरना मैंने सीखा नहीं
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना मैं जानती हूँ
वक़्त के थपेड़ों को सहने कि अब आदत हुई
भीड़ से अलग
खुद में सिमटना मैंने सीखा नहीं
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
स्त्री को समाज में पहचान दिलाना जानती हूँ

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