वो अल्लहड़ बचपन की नादानी
वो थोड़ी मस्ती वो थोड़ी शैतानी
क्या वो पल फिर लौट नहीं सकते
क्या फिर से हम बच्चे नहीं बन सकते
मुझमें छिपी बच्ची कभी कभी बहार आ जाती है
वो थोड़ी मस्ती वो थोड़ी शैतानी
क्या वो पल फिर लौट नहीं सकते
क्या फिर से हम बच्चे नहीं बन सकते
मुझमें छिपी बच्ची कभी कभी बहार आ जाती है
उचल कूद करती है जम कर
अपनों संग धमाल मचाती है
पल में बीत जाते हैं वो पल
जैसे बस पलक झपकाई हो
लगता है मिल सबको ऐसा जैसे
रुत बचपन की लौट कर आई हो
बच्चों सी ही खेल मैं रोज बच्ची बन जाती हूँ
दुनिया की इस भीड़ में मैं कुछ अपनों को पा जाती हूँ
अपनों संग धमाल मचाती है
पल में बीत जाते हैं वो पल
जैसे बस पलक झपकाई हो
लगता है मिल सबको ऐसा जैसे
रुत बचपन की लौट कर आई हो
बच्चों सी ही खेल मैं रोज बच्ची बन जाती हूँ
दुनिया की इस भीड़ में मैं कुछ अपनों को पा जाती हूँ
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