आज मैं अपने सपनो को सच बनाने चली
आज मैं अपने अरमानो की पतंग फिर से उड़ाने चली
पकड़ लूँ ऊँचे उड़ उन पलों को जो
कभी चल पड़े थे दूर मुझसे अनदेखी से मेरी
थाम लूँ या समां लूँ खुद में सपनो को अपने
आज मैं अपने अरमानो की पतंग फिर से उड़ाने चली
पकड़ लूँ ऊँचे उड़ उन पलों को जो
कभी चल पड़े थे दूर मुझसे अनदेखी से मेरी
थाम लूँ या समां लूँ खुद में सपनो को अपने
या फिर अपनी आशाओं को एक नयी उड़न दे दूँ
आज विचलित है मन कुछ परेशां सा न जाने क्यूँ
कुछ अधूरे सपने आज मेरे पूरे होने को हैं लेकिन
सोचती हूँ कितने स्वार्थी हो जाते हैं हम
सपनो की लम्बी कतार लम्बी ही होती चली जाती है न जाने क्यूँ
वक्त पंख लगा कर उड़ता चला जाता है अपनी ही रफ़्तार से
और मैं अपनी खिड़की में बैठ अपने सपनो का दिया जला
बस उसे ही तेल देने में लगी रहती हूँ
न तो दिया ही बुझने देती हूँ न तेल ही ख़त्म होता है मेरी आशाओं का
और मेरे सपनो की वो लम्बी कतार रूपी मेरी बाती
जो कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती
होगी भी कैसे ...मैं होने दूंगी तब ना !!!!
आज विचलित है मन कुछ परेशां सा न जाने क्यूँ
कुछ अधूरे सपने आज मेरे पूरे होने को हैं लेकिन
सोचती हूँ कितने स्वार्थी हो जाते हैं हम
सपनो की लम्बी कतार लम्बी ही होती चली जाती है न जाने क्यूँ
वक्त पंख लगा कर उड़ता चला जाता है अपनी ही रफ़्तार से
और मैं अपनी खिड़की में बैठ अपने सपनो का दिया जला
बस उसे ही तेल देने में लगी रहती हूँ
न तो दिया ही बुझने देती हूँ न तेल ही ख़त्म होता है मेरी आशाओं का
और मेरे सपनो की वो लम्बी कतार रूपी मेरी बाती
जो कभी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती
होगी भी कैसे ...मैं होने दूंगी तब ना !!!!
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