Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday 27 October 2012

आज वो मेरा ही क़त्ल कर पूछता मुझ ही से है ..कैसी हो ??
अब इल्जाम भी क्या दूँ उसे ...जो मेरी हर बात से अनजान है
शायद मैं ही मजबूर थी अपनी सोच से उबर न सकी 
अपनी सोच की अलग दुनियाँ मैंने खुद ही तो बसाई थी 
मेरी दुनियाँ में चारों तरफ .....बस तुम ही तो थे ...
पर ....तुम्हारा वजूद ...ना था ...
सोचा था कभी तो समझोगे मुहब्बत को मेरी ...तुम ..लेकिन
तुम ...कुछ भी ना समझोगे ...ऐसा सोचा ना था
आज घायल हूँ मैं ....शायद कारण भी खुद ही हूँ अपनी बर्बादी का
अब इल्जाम भी क्या दूँ ...जब तुम मेरी हर बात से अनजान हो
...और ....हर देखा हुआ ख्वाब सच हो जाए ....ये मुमकिन भी नहीं है 

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