Fursat ke pal

Fursat ke pal

Saturday, 27 October 2012

वो शाम ढले जब तुम मेरी छत पर मिलने आते थे 
अपनी उँगलियों से हौले हौले जब तुम मेरे बालों को सहलाते थे 
कैसे हँसते हँसते यूँ ही हम हर शाम बिताया करते थे 
आने वाली हर शाम को हम अपने हसीं सपनो से सजाया करते थे 
तारीफें तुम्हारे करने से मैं हल्का सा शर्माती थी 
तुम्हारे मीठे बोलों को मैं बस सुनती ही जाती थी
उड़न छू हो जाते हैं सुहाने पल , तो याद उन्हीं की सताती है
जल्दी से आ जाओ प्रियतम मेरे , मेरी धड़कन तुझे बुलाती है

No comments:

Post a Comment